Friday, January 29, 2010

हिंदी का सम्मान हो ........पर आज जैसे ये तो लुप्त होती जा रही है

हिंदी का सम्मान हो ..........
हिंदी हमारी मातृभाषा है,पर आज जैसे ये तो लुप्त होती जा रही है.
हम सभी जानते हैं,और मानते हैं कि हर भाषा का ज्ञान होना अच्छी बात है,हम जितनी भाषाएँ  जानेंगे हमारी गौरवगाथा होगी|पर जरा सोंचिये ? विदेशियों ने अपने मातृभाषा को छोड़ हमारी हिंदी को उतनी ही तेज़ी से
अपनाया है क्या ? जितनी तेज़ी से हम अंग्रेजी शब्दों के पीछे पागल हो रहे...........
क्या वे भी हमारे तरह हिंदी के पीछे पागल हैं जैसे हम अपने रोज़ान के बातचीत में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग कर रहे ?
हमें अपनी ही रास्त्रभाषा  (हिंदी ) बोलने में ऐसा लगता है जैसे हिंदी में बोलना शर्म  आ रही है .......
तभी तो नववर्ष हो तो "हैप्पी न्यू इयर "बोलते हैं...........धन्यवाद, माफ़ करें,शुक्रिया,की जगह
 " थैंक्यू,प्लीज़,  सॉरी, इत्यादि अभिव्यक्तियों ने ले लिया है.और बातचीत में अपनी पकड़ मजबूती से बना ली है|
आज हम हिंदी जानते हुए भी अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से  सुखद एहसास और गर्व के साथ कर रहे.
कुछ लोगों के लिए तो अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग स्टेट्स सिम्बल बन गया है|
दूसरी की मां चाहे कितनी भी खुबसूरत हो,अपनी मां चाहे जितनी भी बदसूरत हो ,
हम दूसरी की माँ को सम्मान तो दे सकते हैं पर, उसकी खूबसूरती पर फ़िदा होकर अपनी माँ को तो कदापि नहीं छोड़ सकते |अपनी हिंदी भी उसी तरह है अंग्रेजी को जानना, और एकदम से अपना लेना ठीक वैसा ही है अपनी माँ की तुलना किया और छोड़ दिया क्योंकि माँ से ज्यादा खुबसूरत दूसरी की माँ है.......... हमें हिंदी को सम्मान देना होगा क्योंकि यह हमारी रास्त्रभाषा है,मातृभाषा है..........आज भी सरकारी कार्यालयों में सारे कार्य हिंदी में ही सम्पन होते हैं.............और ये तभी संभव है जब हम हिंदी का प्रयोग करें.......
केंद्र,राज्य सरकारें कितनी ही आये और हिंदी की सिथिति बेहतर बनाने की वादे किये,पर हिंदी को ये शिखर देने में किसी ने भी इमानदारी से प्रयास नहीं किया|
दूसरी की मां को सम्मान तो दे सकते हैं पर उसकी तुलना में अपनी मां को छोड़ नहीं सकते....
आपसब के विचार जानने को उत्सुक रहूंगी.............
शुक्रिया..........

BY --------- RAJNI NAYYAR MALHOTRA.... 9:57PM