Wednesday, December 1, 2010

आज धीरे से पांव उतारा है

आज धीरे से पांव उतारा है ,
राजनीति के दलदल में,
ये सोंच कर ,
शायद कर सकूँ ,
एक सवच्छ समाज का निर्माण
विचलित सा है ,
अडिग सा रहनेवाला मन ,
कमी आ गयी है ,
अटूट मनोबल में.
हर झोका पवन का
जो बिखरती थी अपनत्व सा ,
आज बंट कर रह गयी ,
जातिवाद के बंधन में.
अब सच्चाई के साथ ,
नहीं लड़ा करते लोग,
ये राजनीति ,
बाज़ार हो गयी है ,
नोटों के बोल का,
जो जितना बोल लगाया ,
खरीद ले गया वोटों को .
कितना योग्य है,
ईमानदारी से भरा है ,
कोई फर्क नहीं ,
बस वो ही पलड़ा भारी है,
जो उपर है.चांदी के खनक से.
आज मानवता कों,
यूँ बिकता देख कर ,
मुझे मानव जाति में होना ,
भारी लग रहा लोगों का.
यही चलता रहा तो क्या,
निर्माण कर पाएंगे ??
हम एक स्वच्छ समाज का .
फिर भी मन मेरा ,
अभी तक हारा नहीं,
अब तक उम्मीद है मुझे ,
शायद बदल पाऊं इस भ्रष्ट समाज कों .

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

Saturday, September 18, 2010

व्यंग्य लेख ( फिर आया वोटों का मौसम ) गीतों के साथ

व्यंग्य लेख ( फिर आया वोटों का मौसम ) गीतों के साथ .

जब नेता जी भारी मतों से जीतकर कुर्सी पायें तो फूले नहीं समाये.
उनके मन में गुदगुदी कुछ इस तरह हुई ................

" आज मैं ऊपर,आसमां  नीचे,
आज मैं आगे ज़माना है पीछे,
टेल मी  ओ खुदा अब मै क्या करूँ ?????
लेके मर्सिडीस या पैदल ही चलूँ ????""

जब वो लोकप्रिय होगये ,सत्ता में अपनी साख  बना चुके तो उनके कई विरोधी भी पैदा हो जाते है. फिर अपने दबदबे से जितने भी उनके नीचे काम करने वाले  पुलिसकर्मी , अथवा कोई भी मुलाजिम सबको अपनी औकात दिखाते व् बताते रहते हैं .कुछ इस तरह .........

" यहाँ के हम सिकन्दर ,
चाहें तो सबको रख लें अपनी जेब के अंदर,
अरे हमसे बचके रहना ओ खुद्दारों ......."

मंत्री जी के कार्यकाल में उनका ज्यादा समय भाषणों और दौरों में गुजरता है,कुछ वादे भी करते हैं जनता से , चाहे वो झूठी ही क्यों ना हो . ???
और फिर शुरू होता है उनका भाषण का सिलसिला संबोधित करते हैं जनता को ........

"तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हें गरीबी  दूंगा"

और जनता के हित में मिले रुपयों  को वो अपने ही अरमान खरीदने में लूटा देते हैं .
और सोंचते हैं ...........कुछ इस तरह .......
"कुर्सी दिलानेवाले क्यों तुने कुर्सी बनाई,
तुने काहे को कुर्सी दिलाई,
तुने काहे को कुर्सी दिलाई,
 कुर्सी दिलानेवाले क्यों तुने कुर्सी बनाई."

वो जनता को लूटना खसोटना शुरू करते हैं, कभी मह्नगाई बढ़ाकर, तो कभी ये टैक्स तो कभी वो टैक्स लगाकर ........
धीरे धीरे यूँ ही साल गुजरने लगे, फिर आया वोटों का मौसम .
नेता जी पहुंचे फिर............कुछ इस तरह .....

" वोटों के मौसम ने मुझको बुलाया,
मैं लूटेरा फिर वोट लूटने आया,
झूठे वादों से जनता को बहलाया,
झूठे वादों से जनता को बहलाया,
मैं लूटेरा फिर वोट लूटने आया."

जनता भी कहाँ बेवकूफ रही समझदार हो गयी,उसने भी नेता जी के सुर  में सुर  मिला दिया....
कुछ इस तरह ..........

"आइये आपका इंतज़ार था,
 देर लगी आने में तुमको ,
सुक्र है फिर भी आये तो ."

और नेता जी जनता के इस आवभगत से खुश होकर चल गए,अपनी जीत की तैयारी  में.
फिर आया परिणाम घोषणा का समय.
अब नेता जी का हाल कुछ इस तरह था ( कुर्सी छूटने के बाद)

" क्यों बेईमानी की राह में मशहूर हो गए,
इतने छले आवाम को कि गद्दी से दूर हो गए,
ऐसा नहीं कि हमको कोई भी ख़ुशी नहीं,
लेकिन ये ज़िन्दगी तो कोई ज़िन्दगी नहीं,
पाया कुर्सी तो ऐसा लगा सबकुछ पा लिया,
बैंक बैलेंस, मोटर गाड़ी, प्रोपर्टी बना लिया,
क्यों बेईमानी की राह में मशहूर हो गए,
इतने छले आवाम को कि गद्दी से दूर हो गए.
**********************
आपसब के विचार कि प्रतीक्षा में .......

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

Tuesday, May 4, 2010

भ्रष्टाचार को कैसे समाप्त किया जाये .?


आज देश की चरमराती हालत हमें सोंचने पर मजबूर कर रहे भ्रष्टाचार को कैसे समाप्त किया जाये .???
क्या सविधान को कोई ऐसी कानून बनाना चाइये जो जनहित से सम्बंधित हो .
क्या कारण है ( भ्रष्टाचार ) इसका ? .?जनता की गरीबी, जनता का अशिक्षित होना,
शिक्षित होकर भी विवश होना या अपने ही हाथों चुने हुए नेताओं के द्वारा कठपुतली सा बना रहना
आपके विचार सम्मान्निये हैं कृपया अपने विचार से इस उत्कंठा को और भी सहयोगी विचार दें ..

Sunday, March 7, 2010

महिला दिवस पर कुछ (महिला सशक्तिकरण की चुनौतियाँ)

एक लेख.

महिलाओं के साथ सदियों से भेदभाव बरता गया.पुरुष प्रधान समाज ने प्रत्येक क्षेत्र में औरत को एक वस्तु के
रूप में उपयोग किया, महिलाओं की भेदभाव की सिथिति लगभग पूरी दुनियां में रही,इस दिशा में सकारात्मक
प्रयास भी किये गए, 8 मार्च 1975 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.
भारत में २००१ को महिला सशक्तिकरण वर्ष के रूप में मनाया गया , तथा महिलाओं के कल्याण हेतु पहली बार
राष्ट्रीय महिला उत्थान नीति बनाई गयी,जिसमे महिलाओं की सिक्षा,रोज़गार और सामाजिक सुरक्षा में सहभागिता
को सुनिश्चित कराया गया.सामाजिक आर्थिक नीतियाँ बनाने के लिए महिलाओं को प्रेरित करना.महिलाओं
पुरुषों को समाज में सामान भागीदारी निभाने हेतु प्रोत्साहित करना.बालिकाओं एवं महिलाओं के प्रति विविध
अपराधों के रूप में व्याप्त असमानताओं को ख़त्म करना.बहुत सारी योजनाओ को भी सरकार ने महिलाओ की
सिथिति को सुधारने के लिए गठित किये, जिनमे, इंदिरा महिला योजना, एक योजना १५ अगस्त २००१ को
ऋण योजना शुरू की गयी जिसे १५-से १८ वर्षीय किशोरियों के लिए बनायीं गयी.

७३ वे ७४ वे संविधान संशोधन द्वारा देशभर में ग्रामीण व् नगरीय पंचायतों के सभी स्तर पर महिलाओं हेतु एक
तिहाई सीट आरक्षित की गयी.भारत सरकार ने वर्ष २००१ में राष्ट्रीय पुरस्कारों की स्थापना करते हुए महिलाओं को
सशक्त बनाने हेतु भारतीय तलाक ( संसोधन)२००१ की पारित (१) महिलायों पर घरेलु हिंसा(निरोधक)
अधिनियम २००१ (२)परित्यक्ताओं हेतु गुजारा भत्ता (संसोधन) अधिनियम २००१(२) बालिका अनिवार्य
शिक्षा एवं कल्याण विधेयक २००१.उपरोक्त सरकारी सुविधाओं के बावजूद अपेक्षित लाभ
नहीं मिल पाया है,अनेक जगह अनेक बढ़ाएं अभी भी मुंह बाये खड़ी हैं.प्रथमतया पुरुष वर्ग की प्रधानता समाज में
आज भी बनी है,नारी का शोषण जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिवार,सम्पति,
वर का चयन,खेल,शासकीय सेवा,शिखा,विज्ञापन,फिल्म,असंख्य कानून होने के बावजूद बने हैं.पर,
कुछ वर्षों से महिलायों की रहन सहन के सामाजिक स्तर में काफी बदलाव आये हैं, वे अब हर क्षेत्र में अपने
कदम आसानी से बढ़ाने लगी है,ये भी अपने जीवन में आज़ादी को मायने देती हैं यहाँ आज़ादी का मतलब है, पैसा,पॉवर,मन की आज़ादी, बेहतर जॉब.अगर अच्छी जॉब हो तो पैसा,पॉवर, और आज़ादी खुद ब खुद आ जाती है.
आज भी महिलाओं के लिए उनका परिवार ही सबसे ज्यादा मायने रखता है,यह एक ऐसा ट्रेंड है जो कभी नहीं बदला,परिवार को एक सूत्र में पिरोनेवाली महिलाएं आज पुरुषों के साथ या उनसे आगे चल रही
पर उनके लिए आज भी सबसे ज्यादा परिवार ही महत्व रखता है,महिलाएं हर क्षेत्र में आज अपनी सक्रिय
भूमिका निभा रही हैं,अब उनकी आज़ादी पर पाबंदियां जैसे बंदिशें टूटने लगे हैं,जिसका सारा श्रेया खुद
महिलाओं को जाता है...आप सभी महिलाओं को महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें हम महिलायें ऐसे ही
आगे बढ़ते रहें....

Monday, February 8, 2010

ये माँ तू कैसी है ?

हम उम्र के किसी भी पड़ाव में हों,हमें कदम,कदम पर कुछ शरीरिक मानसिक कठिनाइयों का सामना करना ही पड़ता है,वैसे क्षण में यदि कुछ बहुत ज्यादा याद आता है तो वो है..... माँ का आँचल,म की स्नेहल गोद,माँ के प्रेम भरे बोल. माँ क्या है?तपती रेगिस्तान में पानी की फुहार जैसी,थके राही के तेज़ धूप में छायादार वृक्ष के जैसे. कहा भी जाता है----- मा ठंडियाँ छांवां ----- माँ ठंडी छाया के सामान है.जिनके सर पर माँ का साया हो वो तो बहुत किस्मत के धनी होते है, जिनके सर पे ये साया नहीं उनसा बदनसीब कोई नहीं... पर, कुछ बच्चे अपने पैरों पर खड़े होकर माता पिता से आँखें चुराने लगते हैं unhe सेवा, उनकी देखभाल उन्हें बोझ लगने लगती है..जबकि उन्हें अपना कर्तव्य पूरी निष्ठां से करने चाहिए.

मैंने माँ का वर्णन कुछ इस तरह किया है..

ए माँ तू कैसी है ?

सागर में मोती जैसी है.नैनो में ज्योति जैसी है.
नैनो से ज्योति खो जाये,जीवन अँधियारा हो जाये,
वैसे ही तेरे खोने से,जीवन अँधियारा हो जाये.

क्यों ममता में तेरे गहराई है ?
किस मिटटी की रचना पाई है ?
बच्चे तेरे जैसे भी ,सबको गले लगायी है.

ए माँ तू कैसी है ?दीये की बाती जैसी है.
जलकर दीये सा खुद,तम हमारा हर लेती है.

बाती न हो दीये में तो,अन्धकार कौन हर पाए ?
वैसे ही तेरे खोने से, जीवन अँधियारा हो जाये.

ए माँ तू कैसी है ? कुम्हार के चाक जैसी है,
गीली मिटटी तेरे बच्चे,संस्कार उन्हें भर देती है.

ए चाक यदि ना मिल पाए,संस्कार कौन भर पायेगा ?
कौन अपनी कलाओं से ये भांडे को गढ़ पायेगा ?
जीवन कली तेरे होने से ही,सुगन्धित पुष्प बन पायेगा.

ये माँ तू कैसी है ?प्रभु की पावन स्तुति है.
पीर भरे क्षणों में, सच्ची सुख की अनुभूति है.

कोई ढाल यदि खो जाये,खंज़र का वार ना सह पायें.
वैसे ही तेरे खोने से जीवन अँधियारा हो जाये.

ये माँ तू कैसी है ? सहनशील धरा जैसी है.अपकार धरा सहती है,
फिर भी उफ़ ना कहती है.ये धरा यदि खो जाये,जीवन अँधियारा हो जाये.

ये माँ तू कैसी है ?

सबसे पावन,सबसे निर्मल ,तू गंगा के जैसी है.
ममता से भरी मूरत है,तुझमे bhagvan की सूरत है.

जो झुका इन चरणों में,स्वर्ग सा सुख पाया है |

Thursday, February 4, 2010

मुझे गर्व है की मै एक बेटी की मां हूँ

समाज चाहे वो मध्यम वर्ग का हो या उच्च वर्ग का हर किसी के मन में एक बेटे की चाह जगती है, बेटे को जन्म देने में वो
मां भी खुद को काफी भाग्यशाली समझती है की मै एक बेटे की माँ हूँ ,जबकि खुद वो एक बेटी थी कभी
और अपने लड़की होने का गौरव भी वो खो देती है बेटे और बेटी में अंतर ला कर ,मैंने तो औरतों को भी कहते
सुना है बेटी है ,यदि बेटा होता तो अच्छा था, पहली संतान बेटी हो गयी तो बेटे की चाह में कितने बेटी संतान
को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है और न मारा तो एक बेटे की चाह में कई बेटियां कर लेते हैं खामियाजा, सही पालन पोषण बच्चों को नहीं मिल पाता, बेटा
एक हो या दो उसे मनुहार भी बेटियों से ज्यादा देते है, बेटियां गुण से भरी होती हैं पर कोई मूल्य नहीं देते
बेटा औगुन से भरा हो पर बेटा है न ....ये गलत धारणाएं आखिर कब तक लोगों के man में रहेगी .......
मैंने इस धारणा का खुलकर विरोध किया,मेरी भी एक ही संतान है वो भी बेटी, आज मेरी बेटी 10
साल की है,मेरे घरवालों ने ही मेरे माता पिता ससुराल पक्ष के लोग सभी कहते रहे एक बेटा हो जाने दो पर
मैंने अपनी जिद ठान ली की बस एक ही रहेगी, बेटी है पर बेटा से कम नहीं और मेरी जिद से मैंने आज ये
साबित कर दिखलाया की कोई भी गलत धारणा का विरोध एक नारी ही कर सकती है हाँ कुछ लोगों की अपवादी
बातें मैंने भी सुनी जैसे बेटा एक कर लेती तो जीवन सुखी होता क्यों बेटी से जीवन सुखी नहीं होता क्या ?
बेटियां तो मायका और ससुराल दोनों घरों की मर्यादा के साथ साथ अपनी हर जिम्मेवारी को बखूबी
निभाती है मुझे गर्व है की मैंने एक गलत धारणा को बदलने में अपना धेर्य नहीं खोया .औरतें ताना सुनकर अपने विचार बदल देती हैं लग जाती हैं बेटे संतान की तैयारी में , पर मेरे विचार से मेरे आस पास के लोग प्रेरित होकर आज ये धारणाएं बदलने लगे हैं वो बेटी संतान में विश्वास कर रहे, संतान यदि बेटी हुई तो आगे की सोंच नहीं कर रहे एक बेटी में ही काफी लोग खुश हैं ,अगर ये धारणा नहीं बदलेगा तो बेटा,बेटी की चाहत में कितने बेटियां पैदा होने से पहले ही मारी जाती रहेंगी,और इसकी काफी हद तक जिम्मेवार औरत है ....
मुझे गर्व है की मै एक बेटी की मां हूँ ........

Friday, January 29, 2010

हिंदी का सम्मान हो ........पर आज जैसे ये तो लुप्त होती जा रही है

हिंदी का सम्मान हो ..........
हिंदी हमारी मातृभाषा है,पर आज जैसे ये तो लुप्त होती जा रही है.
हम सभी जानते हैं,और मानते हैं कि हर भाषा का ज्ञान होना अच्छी बात है,हम जितनी भाषाएँ  जानेंगे हमारी गौरवगाथा होगी|पर जरा सोंचिये ? विदेशियों ने अपने मातृभाषा को छोड़ हमारी हिंदी को उतनी ही तेज़ी से
अपनाया है क्या ? जितनी तेज़ी से हम अंग्रेजी शब्दों के पीछे पागल हो रहे...........
क्या वे भी हमारे तरह हिंदी के पीछे पागल हैं जैसे हम अपने रोज़ान के बातचीत में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग कर रहे ?
हमें अपनी ही रास्त्रभाषा  (हिंदी ) बोलने में ऐसा लगता है जैसे हिंदी में बोलना शर्म  आ रही है .......
तभी तो नववर्ष हो तो "हैप्पी न्यू इयर "बोलते हैं...........धन्यवाद, माफ़ करें,शुक्रिया,की जगह
 " थैंक्यू,प्लीज़,  सॉरी, इत्यादि अभिव्यक्तियों ने ले लिया है.और बातचीत में अपनी पकड़ मजबूती से बना ली है|
आज हम हिंदी जानते हुए भी अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से  सुखद एहसास और गर्व के साथ कर रहे.
कुछ लोगों के लिए तो अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग स्टेट्स सिम्बल बन गया है|
दूसरी की मां चाहे कितनी भी खुबसूरत हो,अपनी मां चाहे जितनी भी बदसूरत हो ,
हम दूसरी की माँ को सम्मान तो दे सकते हैं पर, उसकी खूबसूरती पर फ़िदा होकर अपनी माँ को तो कदापि नहीं छोड़ सकते |अपनी हिंदी भी उसी तरह है अंग्रेजी को जानना, और एकदम से अपना लेना ठीक वैसा ही है अपनी माँ की तुलना किया और छोड़ दिया क्योंकि माँ से ज्यादा खुबसूरत दूसरी की माँ है.......... हमें हिंदी को सम्मान देना होगा क्योंकि यह हमारी रास्त्रभाषा है,मातृभाषा है..........आज भी सरकारी कार्यालयों में सारे कार्य हिंदी में ही सम्पन होते हैं.............और ये तभी संभव है जब हम हिंदी का प्रयोग करें.......
केंद्र,राज्य सरकारें कितनी ही आये और हिंदी की सिथिति बेहतर बनाने की वादे किये,पर हिंदी को ये शिखर देने में किसी ने भी इमानदारी से प्रयास नहीं किया|
दूसरी की मां को सम्मान तो दे सकते हैं पर उसकी तुलना में अपनी मां को छोड़ नहीं सकते....
आपसब के विचार जानने को उत्सुक रहूंगी.............
शुक्रिया..........

BY --------- RAJNI NAYYAR MALHOTRA.... 9:57PM

Tuesday, January 26, 2010

क्या है मोहब्बत ?

 मेरी पहली रचना प्रेम से आरम्भ करती हूँ , क्योंकि प्रेम से सारा संसार रंगीन है.......हर जीवन  प्रेम के बिन सूना है.

क्या है मुहब्बत ?
यह एक जटिल प्रश्न है,क्योंकि मोहब्बत के अनेको नाम और रूप हैं.हर रूप में मोहब्बत के मायने बदल जाते हैं,कुछ कुछ जो हर किसी के विचार में माने जाते हैं जैसे प्रेम एक प्रेमी और प्रेमिका का...........
मुह्हबत को जहाँ तक मैंने महसूस किया है...........
मोहब्बत आत्मा से आत्मा का खिचाव है,किसी से आपका आत्मिक जुड़ाव ,किसी के प्रति दिल में प्रेम महसूस करना,वो दिल से निकली हुई एक पावन एहसास है,जिसमे सिर्फ दिल का ही जोर चलता है,वो जग की रीत को रस्मों को नहीं मानता, जब मोहब्बत हो जाये तो आपके दिन रात सब बदल जाते हैं.........क्योंकि इसमें एक बेचैनी ,दर्द,शुकून सब कुछ मिलता है........ आपने मोहब्बत को पा लिया तो सारा जग जीत लिया,अगर खो दिया तो सबसे
बड़ी हार क्योंकि......... गिरिधर राठी जी के शब्दों में..................अधूरे प्यार से, असफल प्यार से बड़ी दूसरी कोई यातना नहीं..........
लोग कहते हैं मोहब्बत की नहीं जाती है हो जाती है, मोहब्बत मत करो,पर ये तो किसी के रोकने या कहने से क्या ....
.दिल कब अपने हाथों से निकल जाता आप सोंच भी नहीं पाते,जब आपको किसी के तरफ खिचाव होने लगे,उसकी दूरी सताने लगे,हर पल वो मन में मस्तिस्क में छाने लगे तब जान पाते हो आपको उससे मोहब्बत हो गयी है.........
और आप दिल हार जाते हो....मेरी नज़र में जिस्म का खिचाव न होकर मन से मन का लगाव मन का खिचाव
का नाम मोहब्बत है.......अगर मन को कोई भा गया,तो उसकी हर अच्छाई,बुराई उसकी हर
वस्तु पर आपका अधिकार स्वत है.........क्योंकि तन पर किसी के पहरे हों,वश हों, मन पे तो नहीं...........
मोहब्बत सचमुच एक ऐसी दर्द है जिसकी दवा भी वो खुद ही है.....
 पर प्रेम की गहराई को थाहना  असंभव है ये वो सागर है जिसकी गहराई को डूब कर ही जाना जा सकता है,इसके उदर में कितने  फूल और कितने कांटे हैं कितनी खुशियाँ और कितने आंसू  हैं........... जो प्रेम किया हो वो भी इसकी परिभाषा को नहीं बता सकता ,पर हाँ अपने अनुभूतियों को बताया जा सकता है.
मैंने जिस हद तक प्रेम को महसूस किया ....अपने विचार मैंने रखे हैं आगे भी जारी है.........
क्योंकि चाहत सागर से भी गहरा है
ये सच है की आप किसी से कितना प्यार करते हैं उसे माप कर नहीं बता सकते.......क्योंकि चाहत सागर से भी गहरा है जिसकी कोई परिमाप नहीं..........विरह कैसा ........तन दूर होता है मन में तो सदा साथ पाते हो .......अपने प्रीतम को......... बस जरुरत है चाहत बिल्कुल सच्ची होनी चाहिए,...........दूरी में भी हर पल पास का ही एह्साह पाओगे.......आगे  भी  जारी है.....
क्या मुहब्बत एक ही बार की जाती है ?
क्या मुहब्बत एक ही बार की जाती है.........मेरे विचार से प्रेम चाहे किसी का भी हो, कभी भी किसी भी मोड़ पर आ सकता है...
लोगों को अक्सर कहते सुना है प्यार एक ही बार किया जाता है,पर मै इससे सहमत नहीं.............
kyonki अगर आप पहले किसी के  प्यार को ( वो प्रेम माँ का ,पिता का प्रेमी का भाई का बहन का किसी का भी )किसी कारणवश खो देते हैं,तो उसकी ही यादों के सहारे तब तक जीते रहते हैं
चाहे वो यादें कड़वी हों या मीठी, ,पर अचानक कोई आपकी ज़िन्दगी में उस खालीपन को उस अभाव को भरने लगता है..........वो आपको उस बीते पल से भी ज्यादा चाहने लगता है,आपकी भावनाएं इस बात का एहसास खुद करने लगती हैं  तो आपको स्वतः उससे प्यार होने लगता है, तो मेरे कहने का आशय है प्यार किसी भी मोड़ पे हो सकता है पर उसी अवस्था में अगर आप पहले प्रेम में असफल हुए हो, किसी को खो चुके हों (कसौटी पर वो खरा न उतरा हो ये जरुरी नहीं,)पर कोई अपने समर्पण भाव से,प्रेम से मन से आपके मन के खालीपन को भरने लगे तो आपका झुकाव खुद बी खुद होने लगता है....
और कोई उस खालीपन को दिल से भरने को तैयार है तो आपका मन खुद ब खुद उसकी तरफ आकर्षित होने लगता है............शायद मेरे विचार से सब लोग सहमत ना हों ..........पर ये भी मैंने महसूस किया है.......आगे भी जारी है .......
सामनेवाला का प्रेम बस एक शारीरिक आकर्षण हो तो उसे प्रेम नहीं कहा जा सकता वो आपके मन से नहीं आपके तन से प्रेम करता हो ,और आप उसे मन से 
ये कोई जरुरी नहीं की  आप जिसे प्रेम करते हों ,वो भी आपको चाहता हो सामनेवाला का प्रेम बस एक शारीरिक आकर्षण हो तो उसे प्रेम नहीं कहा जा सकता वो आपके मन से नहीं आपके तन से प्रेम करता हो ,और आप उसे मन से चाहते हों ऐसी अवस्था में आपके ज़िन्दगी में कोई और आत्मिक प्रेम से आता हो आपको मन से अपनाता हो तो सवाभाविक है वो इन्सान आपका  प्रेम पूजा सबकुछ बन सकता है ,ऐसे सूरत में  प्यार एक ही बार किया जाता है जैसी बात कहाँ मायने रखती है...........
ये कोई जरुरी नहीं की  आप जिसे प्रेम करते हों ,वो भी आपको चाहता हो,ऐसे सूरत में
प्यार एक ही बार किया जाता है जैसी बात कहाँ मायने रखती है...........
सामनेवाला भी आपको प्रेम करे तो प्यार कहा जाता है..............शारीरिक आकर्षण  प्रेम नहीं,भावनात्मक प्रेम खो भी जाये तो
उस प्यार को आजीवन यादों में भी गुजरा जा सकता है.........
पर जहाँ प्रेम एकतरफा हो बस (सरीर का आकर्षण ) तो वहा ये बात रह ही नहीं जाती....
ऐसी सूरत में कोई आपके ज़िन्दगी में भराव लाना चाहे कोई ज़िन्दगी में आना चाहे तो
प्यार बस एक बार ही किया जाता है ........अपने मायने को वही ख़त्म कर देती है...........
मैंने इसी विचार को कहा प्रेम कभी भी हो सकता है, बशर्ते आप पहले प्रेम में असफल हुए हों.........
..शायद मेरे विचार स्वीकार हों .......आगे भी जारी है ....
 मोहब्बत आत्मा से आत्मा का खिचाव है
 मोहब्बत आत्मा से आत्मा का खिचाव है,किसी से आपका आत्मिक जुड़ाव ,
किसी के प्रति दिल में प्रेम महसूस करना,वो दिल से निकली हुई एक पावन एहसास है,
मैंने मुहब्बत को पावन मन का मन से सम्बन्ध माना . है न कि जिस्म कि भूख को प्रेम का नाम दिया .......
.फिर वो अंतरात्मा का प्रेम न होकर बस एक शारीरिक आकर्षण मात्र रह जायेगा........
और यहाँ पर प्रेम को मैंने सिर्फ प्रेमी और प्रेमिका के प्यार को नहीं दिखाया, है
आत्मिक प्यार कहा है तो आत्मिक प्यार आप अपने भाई,बहन माता पिता किसी से भी कर सकते हो
तो क्या वो सेक्स से जुड़ा प्यार है..हो सकता है आज प्रेमी प्रेमिका का प्यार में सेक्स कि झलक मिलती हो,
पर वो एक शारीरिक आकर्षण हुआ आत्मिक नहीं... हो सकता है फिर मेरे विचार विवादासप्द हों..............  आगे भी जारी है ........

बहुत से लोगों ने प्रेम को बस एक प्रेमी प्रेमिका के प्यार के रूप में ही देखा.तभी तो प्रेम को वासना का नाम दे दिया है.....ये कोई जरुरी नहीं की कोई आपको बस वासना से ओतप्रोत होकर ही प्रेम करे, आपके सरल स्वभाव से ,आपके व्यक्तित्व से, आपके प्रेम से आपकी बोली की मिठास से आपके त्याग से आपके समर्पण भावना से कोई आपको चाह सकता है. तो क्या वो वासना भरा प्रेम है..........? ये प्रेम किसी पर भी लागू  हो सकता है.....माता,पिता के प्रेम में भाई बहन के प्रेम में, पति पत्नि के प्रेम में, प्रेमी प्रेमिका के प्रेम में.........आप कसौटी पर हर बात को परख सकते हैं पर प्रेम को बस भावनाओं से परखा जाता है..........आज भी प्रेम में सच्ची भावना निहित है.........मै जानती हूँ ,मैंने देखा है......कुछलोग   इस तथ्य को नहीं मान रहे, आज भी संसार में कुछ लोग हैं जो प्रेम में स्वार्थ न लेकर समर्पण और त्याग से भरे हैं......... आज काफी हद तक लोगों के दिल में स्वार्थ की भावना आ चुके हैं,पर उससे क्या. सभी के साथ तो ऐसा नहीं ...........और स्वार्थ की भावना तो हर काल में रहा कहीं थोड़ा कही ज्यादा. तो क्या प्रेम का स्वरूप बदल गया,क्या लोगों ने प्रेम करना छोड़ दिया.....आपने किसे देखा है प्रेम की राग आलाप करते हुए वो पूरी ज़िन्दगी बीता दिया..........किसी के खोने के बाद का क्या आजीवन आप अपने आपको ये सोंच कर गम में कैद कर लेते हैं मैंने अमुक चीज़ को,अमुक व्यक्ति को खो दिया.....आपके जीवन में क्या फिर खुशियाँ आती ही नहीं आप उसे अपनाते ही नहीं हो.............???
नहीं कुछ दिनों के बाद ये खालीपन एक भराव में बदल जाता है.........आपको एहसास होकर भी एहसास नहीं होता..........क्योंकि आप उस अँधेरे से निकलना ही नहीं चाहते...और जो ज्योति आपके रहो को रोशन करने को तत्पर है उसे चोट  पंहुचा रहे होते हो...........मेरी बातों को बखूभी आप समझ जायेंगे ........ अगर हर बातों को सोंचा जाये..
हाँ एक बात मुहब्बत में तय है आप जिसे सच्ची  भावना से चाहते हैं तो उस पर अपना सर्वस्व न्योव्छावर   की भावना रखते हैं 
तो सर्वस्व में आपका तन,मन धन हर खुशियाँ आ जाती हैं .........प्रेम भावना,का त्याग का,सम्मोहन का,आकर्षण का मिश्रण है  इस प्रेम से ही दुनिया रंगीन है ...........