Monday, February 8, 2010

ये माँ तू कैसी है ?

हम उम्र के किसी भी पड़ाव में हों,हमें कदम,कदम पर कुछ शरीरिक मानसिक कठिनाइयों का सामना करना ही पड़ता है,वैसे क्षण में यदि कुछ बहुत ज्यादा याद आता है तो वो है..... माँ का आँचल,म की स्नेहल गोद,माँ के प्रेम भरे बोल. माँ क्या है?तपती रेगिस्तान में पानी की फुहार जैसी,थके राही के तेज़ धूप में छायादार वृक्ष के जैसे. कहा भी जाता है----- मा ठंडियाँ छांवां ----- माँ ठंडी छाया के सामान है.जिनके सर पर माँ का साया हो वो तो बहुत किस्मत के धनी होते है, जिनके सर पे ये साया नहीं उनसा बदनसीब कोई नहीं... पर, कुछ बच्चे अपने पैरों पर खड़े होकर माता पिता से आँखें चुराने लगते हैं unhe सेवा, उनकी देखभाल उन्हें बोझ लगने लगती है..जबकि उन्हें अपना कर्तव्य पूरी निष्ठां से करने चाहिए.

मैंने माँ का वर्णन कुछ इस तरह किया है..

ए माँ तू कैसी है ?

सागर में मोती जैसी है.नैनो में ज्योति जैसी है.
नैनो से ज्योति खो जाये,जीवन अँधियारा हो जाये,
वैसे ही तेरे खोने से,जीवन अँधियारा हो जाये.

क्यों ममता में तेरे गहराई है ?
किस मिटटी की रचना पाई है ?
बच्चे तेरे जैसे भी ,सबको गले लगायी है.

ए माँ तू कैसी है ?दीये की बाती जैसी है.
जलकर दीये सा खुद,तम हमारा हर लेती है.

बाती न हो दीये में तो,अन्धकार कौन हर पाए ?
वैसे ही तेरे खोने से, जीवन अँधियारा हो जाये.

ए माँ तू कैसी है ? कुम्हार के चाक जैसी है,
गीली मिटटी तेरे बच्चे,संस्कार उन्हें भर देती है.

ए चाक यदि ना मिल पाए,संस्कार कौन भर पायेगा ?
कौन अपनी कलाओं से ये भांडे को गढ़ पायेगा ?
जीवन कली तेरे होने से ही,सुगन्धित पुष्प बन पायेगा.

ये माँ तू कैसी है ?प्रभु की पावन स्तुति है.
पीर भरे क्षणों में, सच्ची सुख की अनुभूति है.

कोई ढाल यदि खो जाये,खंज़र का वार ना सह पायें.
वैसे ही तेरे खोने से जीवन अँधियारा हो जाये.

ये माँ तू कैसी है ? सहनशील धरा जैसी है.अपकार धरा सहती है,
फिर भी उफ़ ना कहती है.ये धरा यदि खो जाये,जीवन अँधियारा हो जाये.

ये माँ तू कैसी है ?

सबसे पावन,सबसे निर्मल ,तू गंगा के जैसी है.
ममता से भरी मूरत है,तुझमे bhagvan की सूरत है.

जो झुका इन चरणों में,स्वर्ग सा सुख पाया है |

Thursday, February 4, 2010

मुझे गर्व है की मै एक बेटी की मां हूँ

समाज चाहे वो मध्यम वर्ग का हो या उच्च वर्ग का हर किसी के मन में एक बेटे की चाह जगती है, बेटे को जन्म देने में वो
मां भी खुद को काफी भाग्यशाली समझती है की मै एक बेटे की माँ हूँ ,जबकि खुद वो एक बेटी थी कभी
और अपने लड़की होने का गौरव भी वो खो देती है बेटे और बेटी में अंतर ला कर ,मैंने तो औरतों को भी कहते
सुना है बेटी है ,यदि बेटा होता तो अच्छा था, पहली संतान बेटी हो गयी तो बेटे की चाह में कितने बेटी संतान
को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है और न मारा तो एक बेटे की चाह में कई बेटियां कर लेते हैं खामियाजा, सही पालन पोषण बच्चों को नहीं मिल पाता, बेटा
एक हो या दो उसे मनुहार भी बेटियों से ज्यादा देते है, बेटियां गुण से भरी होती हैं पर कोई मूल्य नहीं देते
बेटा औगुन से भरा हो पर बेटा है न ....ये गलत धारणाएं आखिर कब तक लोगों के man में रहेगी .......
मैंने इस धारणा का खुलकर विरोध किया,मेरी भी एक ही संतान है वो भी बेटी, आज मेरी बेटी 10
साल की है,मेरे घरवालों ने ही मेरे माता पिता ससुराल पक्ष के लोग सभी कहते रहे एक बेटा हो जाने दो पर
मैंने अपनी जिद ठान ली की बस एक ही रहेगी, बेटी है पर बेटा से कम नहीं और मेरी जिद से मैंने आज ये
साबित कर दिखलाया की कोई भी गलत धारणा का विरोध एक नारी ही कर सकती है हाँ कुछ लोगों की अपवादी
बातें मैंने भी सुनी जैसे बेटा एक कर लेती तो जीवन सुखी होता क्यों बेटी से जीवन सुखी नहीं होता क्या ?
बेटियां तो मायका और ससुराल दोनों घरों की मर्यादा के साथ साथ अपनी हर जिम्मेवारी को बखूबी
निभाती है मुझे गर्व है की मैंने एक गलत धारणा को बदलने में अपना धेर्य नहीं खोया .औरतें ताना सुनकर अपने विचार बदल देती हैं लग जाती हैं बेटे संतान की तैयारी में , पर मेरे विचार से मेरे आस पास के लोग प्रेरित होकर आज ये धारणाएं बदलने लगे हैं वो बेटी संतान में विश्वास कर रहे, संतान यदि बेटी हुई तो आगे की सोंच नहीं कर रहे एक बेटी में ही काफी लोग खुश हैं ,अगर ये धारणा नहीं बदलेगा तो बेटा,बेटी की चाहत में कितने बेटियां पैदा होने से पहले ही मारी जाती रहेंगी,और इसकी काफी हद तक जिम्मेवार औरत है ....
मुझे गर्व है की मै एक बेटी की मां हूँ ........