Saturday, September 18, 2010

व्यंग्य लेख ( फिर आया वोटों का मौसम ) गीतों के साथ

व्यंग्य लेख ( फिर आया वोटों का मौसम ) गीतों के साथ .

जब नेता जी भारी मतों से जीतकर कुर्सी पायें तो फूले नहीं समाये.
उनके मन में गुदगुदी कुछ इस तरह हुई ................

" आज मैं ऊपर,आसमां  नीचे,
आज मैं आगे ज़माना है पीछे,
टेल मी  ओ खुदा अब मै क्या करूँ ?????
लेके मर्सिडीस या पैदल ही चलूँ ????""

जब वो लोकप्रिय होगये ,सत्ता में अपनी साख  बना चुके तो उनके कई विरोधी भी पैदा हो जाते है. फिर अपने दबदबे से जितने भी उनके नीचे काम करने वाले  पुलिसकर्मी , अथवा कोई भी मुलाजिम सबको अपनी औकात दिखाते व् बताते रहते हैं .कुछ इस तरह .........

" यहाँ के हम सिकन्दर ,
चाहें तो सबको रख लें अपनी जेब के अंदर,
अरे हमसे बचके रहना ओ खुद्दारों ......."

मंत्री जी के कार्यकाल में उनका ज्यादा समय भाषणों और दौरों में गुजरता है,कुछ वादे भी करते हैं जनता से , चाहे वो झूठी ही क्यों ना हो . ???
और फिर शुरू होता है उनका भाषण का सिलसिला संबोधित करते हैं जनता को ........

"तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हें गरीबी  दूंगा"

और जनता के हित में मिले रुपयों  को वो अपने ही अरमान खरीदने में लूटा देते हैं .
और सोंचते हैं ...........कुछ इस तरह .......
"कुर्सी दिलानेवाले क्यों तुने कुर्सी बनाई,
तुने काहे को कुर्सी दिलाई,
तुने काहे को कुर्सी दिलाई,
 कुर्सी दिलानेवाले क्यों तुने कुर्सी बनाई."

वो जनता को लूटना खसोटना शुरू करते हैं, कभी मह्नगाई बढ़ाकर, तो कभी ये टैक्स तो कभी वो टैक्स लगाकर ........
धीरे धीरे यूँ ही साल गुजरने लगे, फिर आया वोटों का मौसम .
नेता जी पहुंचे फिर............कुछ इस तरह .....

" वोटों के मौसम ने मुझको बुलाया,
मैं लूटेरा फिर वोट लूटने आया,
झूठे वादों से जनता को बहलाया,
झूठे वादों से जनता को बहलाया,
मैं लूटेरा फिर वोट लूटने आया."

जनता भी कहाँ बेवकूफ रही समझदार हो गयी,उसने भी नेता जी के सुर  में सुर  मिला दिया....
कुछ इस तरह ..........

"आइये आपका इंतज़ार था,
 देर लगी आने में तुमको ,
सुक्र है फिर भी आये तो ."

और नेता जी जनता के इस आवभगत से खुश होकर चल गए,अपनी जीत की तैयारी  में.
फिर आया परिणाम घोषणा का समय.
अब नेता जी का हाल कुछ इस तरह था ( कुर्सी छूटने के बाद)

" क्यों बेईमानी की राह में मशहूर हो गए,
इतने छले आवाम को कि गद्दी से दूर हो गए,
ऐसा नहीं कि हमको कोई भी ख़ुशी नहीं,
लेकिन ये ज़िन्दगी तो कोई ज़िन्दगी नहीं,
पाया कुर्सी तो ऐसा लगा सबकुछ पा लिया,
बैंक बैलेंस, मोटर गाड़ी, प्रोपर्टी बना लिया,
क्यों बेईमानी की राह में मशहूर हो गए,
इतने छले आवाम को कि गद्दी से दूर हो गए.
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आपसब के विचार कि प्रतीक्षा में .......

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"