यह एक जटिल प्रश्न है,क्योंकि मोहब्बत के अनेको नाम और रूप हैं.हर रूप में मोहब्बत के मायने बदल जाते हैं,कुछ कुछ जो हर किसी के विचार में माने जाते हैं जैसे प्रेम एक प्रेमी और प्रेमिका का...........
मुह्हबत को जहाँ तक मैंने महसूस किया है...........
मोहब्बत आत्मा से आत्मा का खिचाव है,किसी से आपका आत्मिक जुड़ाव ,किसी के प्रति दिल में प्रेम महसूस करना,वो दिल से निकली हुई एक पावन एहसास है,जिसमे सिर्फ दिल का ही जोर चलता है,वो जग की रीत को रस्मों को नहीं मानता, जब मोहब्बत हो जाये तो आपके दिन रात सब बदल जाते हैं.........क्योंकि इसमें एक बेचैनी ,दर्द,शुकून सब कुछ मिलता है........ आपने मोहब्बत को पा लिया तो सारा जग जीत लिया,अगर खो दिया तो सबसे
बड़ी हार क्योंकि......... गिरिधर राठी जी के शब्दों में..................अधूरे प्यार से, असफल प्यार से बड़ी दूसरी कोई यातना नहीं..........
लोग कहते हैं मोहब्बत की नहीं जाती है हो जाती है, मोहब्बत मत करो,पर ये तो किसी के रोकने या कहने से क्या ....
.दिल कब अपने हाथों से निकल जाता आप सोंच भी नहीं पाते,जब आपको किसी के तरफ खिचाव होने लगे,उसकी दूरी सताने लगे,हर पल वो मन में मस्तिस्क में छाने लगे तब जान पाते हो आपको उससे मोहब्बत हो गयी है.........
और आप दिल हार जाते हो....मेरी नज़र में जिस्म का खिचाव न होकर मन से मन का लगाव मन का खिचाव
का नाम मोहब्बत है.......अगर मन को कोई भा गया,तो उसकी हर अच्छाई,बुराई उसकी हर
वस्तु पर आपका अधिकार स्वत है.........क्योंकि तन पर किसी के पहरे हों,वश हों, मन पे तो नहीं...........
मोहब्बत सचमुच एक ऐसी दर्द है जिसकी दवा भी वो खुद ही है.....
पर प्रेम की गहराई को थाहना असंभव है ये वो सागर है जिसकी गहराई को डूब कर ही जाना जा सकता है,इसके उदर में कितने फूल और कितने कांटे हैं कितनी खुशियाँ और कितने आंसू हैं........... जो प्रेम किया हो वो भी इसकी परिभाषा को नहीं बता सकता ,पर हाँ अपने अनुभूतियों को बताया जा सकता है.
मैंने जिस हद तक प्रेम को महसूस किया ....अपने विचार मैंने रखे हैं आगे भी जारी है.........
क्योंकि चाहत सागर से भी गहरा है
ये सच है की आप किसी से कितना प्यार करते हैं उसे माप कर नहीं बता सकते.......क्योंकि चाहत सागर से भी गहरा है जिसकी कोई परिमाप नहीं..........विरह कैसा ........तन दूर होता है मन में तो सदा साथ पाते हो .......अपने प्रीतम को......... बस जरुरत है चाहत बिल्कुल सच्ची होनी चाहिए,...........दूरी में भी हर पल पास का ही एह्साह पाओगे.......आगे भी जारी है.....
क्या मुहब्बत एक ही बार की जाती है ?
क्या मुहब्बत एक ही बार की जाती है ?
क्या मुहब्बत एक ही बार की जाती है.........मेरे विचार से प्रेम चाहे किसी का भी हो, कभी भी किसी भी मोड़ पर आ सकता है...
लोगों को अक्सर कहते सुना है प्यार एक ही बार किया जाता है,पर मै इससे सहमत नहीं.............
kyonki अगर आप पहले किसी के प्यार को ( वो प्रेम माँ का ,पिता का प्रेमी का भाई का बहन का किसी का भी )किसी कारणवश खो देते हैं,तो उसकी ही यादों के सहारे तब तक जीते रहते हैं
चाहे वो यादें कड़वी हों या मीठी, ,पर अचानक कोई आपकी ज़िन्दगी में उस खालीपन को उस अभाव को भरने लगता है..........वो आपको उस बीते पल से भी ज्यादा चाहने लगता है,आपकी भावनाएं इस बात का एहसास खुद करने लगती हैं तो आपको स्वतः उससे प्यार होने लगता है, तो मेरे कहने का आशय है प्यार किसी भी मोड़ पे हो सकता है पर उसी अवस्था में अगर आप पहले प्रेम में असफल हुए हो, किसी को खो चुके हों (कसौटी पर वो खरा न उतरा हो ये जरुरी नहीं,)पर कोई अपने समर्पण भाव से,प्रेम से मन से आपके मन के खालीपन को भरने लगे तो आपका झुकाव खुद बी खुद होने लगता है....
और कोई उस खालीपन को दिल से भरने को तैयार है तो आपका मन खुद ब खुद उसकी तरफ आकर्षित होने लगता है............शायद मेरे विचार से सब लोग सहमत ना हों ..........पर ये भी मैंने महसूस किया है.......आगे भी जारी है .......
लोगों को अक्सर कहते सुना है प्यार एक ही बार किया जाता है,पर मै इससे सहमत नहीं.............
kyonki अगर आप पहले किसी के प्यार को ( वो प्रेम माँ का ,पिता का प्रेमी का भाई का बहन का किसी का भी )किसी कारणवश खो देते हैं,तो उसकी ही यादों के सहारे तब तक जीते रहते हैं
चाहे वो यादें कड़वी हों या मीठी, ,पर अचानक कोई आपकी ज़िन्दगी में उस खालीपन को उस अभाव को भरने लगता है..........वो आपको उस बीते पल से भी ज्यादा चाहने लगता है,आपकी भावनाएं इस बात का एहसास खुद करने लगती हैं तो आपको स्वतः उससे प्यार होने लगता है, तो मेरे कहने का आशय है प्यार किसी भी मोड़ पे हो सकता है पर उसी अवस्था में अगर आप पहले प्रेम में असफल हुए हो, किसी को खो चुके हों (कसौटी पर वो खरा न उतरा हो ये जरुरी नहीं,)पर कोई अपने समर्पण भाव से,प्रेम से मन से आपके मन के खालीपन को भरने लगे तो आपका झुकाव खुद बी खुद होने लगता है....
और कोई उस खालीपन को दिल से भरने को तैयार है तो आपका मन खुद ब खुद उसकी तरफ आकर्षित होने लगता है............शायद मेरे विचार से सब लोग सहमत ना हों ..........पर ये भी मैंने महसूस किया है.......आगे भी जारी है .......
सामनेवाला का प्रेम बस एक शारीरिक आकर्षण हो तो उसे प्रेम नहीं कहा जा सकता वो आपके मन से नहीं आपके तन से प्रेम करता हो ,और आप उसे मन से
ये कोई जरुरी नहीं की आप जिसे प्रेम करते हों ,वो भी आपको चाहता हो सामनेवाला का प्रेम बस एक शारीरिक आकर्षण हो तो उसे प्रेम नहीं कहा जा सकता वो आपके मन से नहीं आपके तन से प्रेम करता हो ,और आप उसे मन से चाहते हों ऐसी अवस्था में आपके ज़िन्दगी में कोई और आत्मिक प्रेम से आता हो आपको मन से अपनाता हो तो सवाभाविक है वो इन्सान आपका प्रेम पूजा सबकुछ बन सकता है ,ऐसे सूरत में प्यार एक ही बार किया जाता है जैसी बात कहाँ मायने रखती है...........
ये कोई जरुरी नहीं की आप जिसे प्रेम करते हों ,वो भी आपको चाहता हो,ऐसे सूरत में
प्यार एक ही बार किया जाता है जैसी बात कहाँ मायने रखती है...........
सामनेवाला भी आपको प्रेम करे तो प्यार कहा जाता है..............शारीरिक आकर्षण प्रेम नहीं,भावनात्मक प्रेम खो भी जाये तो
उस प्यार को आजीवन यादों में भी गुजरा जा सकता है.........
पर जहाँ प्रेम एकतरफा हो बस (सरीर का आकर्षण ) तो वहा ये बात रह ही नहीं जाती....
ऐसी सूरत में कोई आपके ज़िन्दगी में भराव लाना चाहे कोई ज़िन्दगी में आना चाहे तो
प्यार बस एक बार ही किया जाता है ........अपने मायने को वही ख़त्म कर देती है...........
मैंने इसी विचार को कहा प्रेम कभी भी हो सकता है, बशर्ते आप पहले प्रेम में असफल हुए हों.........
..शायद मेरे विचार स्वीकार हों .......आगे भी जारी है ....
मोहब्बत आत्मा से आत्मा का खिचाव हैप्यार एक ही बार किया जाता है जैसी बात कहाँ मायने रखती है...........
सामनेवाला भी आपको प्रेम करे तो प्यार कहा जाता है..............शारीरिक आकर्षण प्रेम नहीं,भावनात्मक प्रेम खो भी जाये तो
उस प्यार को आजीवन यादों में भी गुजरा जा सकता है.........
पर जहाँ प्रेम एकतरफा हो बस (सरीर का आकर्षण ) तो वहा ये बात रह ही नहीं जाती....
ऐसी सूरत में कोई आपके ज़िन्दगी में भराव लाना चाहे कोई ज़िन्दगी में आना चाहे तो
प्यार बस एक बार ही किया जाता है ........अपने मायने को वही ख़त्म कर देती है...........
मैंने इसी विचार को कहा प्रेम कभी भी हो सकता है, बशर्ते आप पहले प्रेम में असफल हुए हों.........
..शायद मेरे विचार स्वीकार हों .......आगे भी जारी है ....
मोहब्बत आत्मा से आत्मा का खिचाव है,किसी से आपका आत्मिक जुड़ाव ,
किसी के प्रति दिल में प्रेम महसूस करना,वो दिल से निकली हुई एक पावन एहसास है,
मैंने मुहब्बत को पावन मन का मन से सम्बन्ध माना . है न कि जिस्म कि भूख को प्रेम का नाम दिया .......
.फिर वो अंतरात्मा का प्रेम न होकर बस एक शारीरिक आकर्षण मात्र रह जायेगा........
और यहाँ पर प्रेम को मैंने सिर्फ प्रेमी और प्रेमिका के प्यार को नहीं दिखाया, है
आत्मिक प्यार कहा है तो आत्मिक प्यार आप अपने भाई,बहन माता पिता किसी से भी कर सकते हो
तो क्या वो सेक्स से जुड़ा प्यार है..हो सकता है आज प्रेमी प्रेमिका का प्यार में सेक्स कि झलक मिलती हो,
पर वो एक शारीरिक आकर्षण हुआ आत्मिक नहीं... हो सकता है फिर मेरे विचार विवादासप्द हों.............. आगे भी जारी है ........
बहुत से लोगों ने प्रेम को बस एक प्रेमी प्रेमिका के प्यार के रूप में ही देखा.तभी तो प्रेम को वासना का नाम दे दिया है.....ये कोई जरुरी नहीं की कोई आपको बस वासना से ओतप्रोत होकर ही प्रेम करे, आपके सरल स्वभाव से ,आपके व्यक्तित्व से, आपके प्रेम से आपकी बोली की मिठास से आपके त्याग से आपके समर्पण भावना से कोई आपको चाह सकता है. तो क्या वो वासना भरा प्रेम है..........? ये प्रेम किसी पर भी लागू हो सकता है.....माता,पिता के प्रेम में भाई बहन के प्रेम में, पति पत्नि के प्रेम में, प्रेमी प्रेमिका के प्रेम में.........आप कसौटी पर हर बात को परख सकते हैं पर प्रेम को बस भावनाओं से परखा जाता है..........आज भी प्रेम में सच्ची भावना निहित है.........मै जानती हूँ ,मैंने देखा है......कुछलोग इस तथ्य को नहीं मान रहे, आज भी संसार में कुछ लोग हैं जो प्रेम में स्वार्थ न लेकर समर्पण और त्याग से भरे हैं......... आज काफी हद तक लोगों के दिल में स्वार्थ की भावना आ चुके हैं,पर उससे क्या. सभी के साथ तो ऐसा नहीं ...........और स्वार्थ की भावना तो हर काल में रहा कहीं थोड़ा कही ज्यादा. तो क्या प्रेम का स्वरूप बदल गया,क्या लोगों ने प्रेम करना छोड़ दिया.....आपने किसे देखा है प्रेम की राग आलाप करते हुए वो पूरी ज़िन्दगी बीता दिया..........किसी के खोने के बाद का क्या आजीवन आप अपने आपको ये सोंच कर गम में कैद कर लेते हैं मैंने अमुक चीज़ को,अमुक व्यक्ति को खो दिया.....आपके जीवन में क्या फिर खुशियाँ आती ही नहीं आप उसे अपनाते ही नहीं हो.............???
नहीं कुछ दिनों के बाद ये खालीपन एक भराव में बदल जाता है.........आपको एहसास होकर भी एहसास नहीं होता..........क्योंकि आप उस अँधेरे से निकलना ही नहीं चाहते...और जो ज्योति आपके रहो को रोशन करने को तत्पर है उसे चोट पंहुचा रहे होते हो...........मेरी बातों को बखूभी आप समझ जायेंगे ........ अगर हर बातों को सोंचा जाये..
किसी के प्रति दिल में प्रेम महसूस करना,वो दिल से निकली हुई एक पावन एहसास है,
मैंने मुहब्बत को पावन मन का मन से सम्बन्ध माना . है न कि जिस्म कि भूख को प्रेम का नाम दिया .......
.फिर वो अंतरात्मा का प्रेम न होकर बस एक शारीरिक आकर्षण मात्र रह जायेगा........
और यहाँ पर प्रेम को मैंने सिर्फ प्रेमी और प्रेमिका के प्यार को नहीं दिखाया, है
आत्मिक प्यार कहा है तो आत्मिक प्यार आप अपने भाई,बहन माता पिता किसी से भी कर सकते हो
तो क्या वो सेक्स से जुड़ा प्यार है..हो सकता है आज प्रेमी प्रेमिका का प्यार में सेक्स कि झलक मिलती हो,
पर वो एक शारीरिक आकर्षण हुआ आत्मिक नहीं... हो सकता है फिर मेरे विचार विवादासप्द हों.............. आगे भी जारी है ........
बहुत से लोगों ने प्रेम को बस एक प्रेमी प्रेमिका के प्यार के रूप में ही देखा.तभी तो प्रेम को वासना का नाम दे दिया है.....ये कोई जरुरी नहीं की कोई आपको बस वासना से ओतप्रोत होकर ही प्रेम करे, आपके सरल स्वभाव से ,आपके व्यक्तित्व से, आपके प्रेम से आपकी बोली की मिठास से आपके त्याग से आपके समर्पण भावना से कोई आपको चाह सकता है. तो क्या वो वासना भरा प्रेम है..........? ये प्रेम किसी पर भी लागू हो सकता है.....माता,पिता के प्रेम में भाई बहन के प्रेम में, पति पत्नि के प्रेम में, प्रेमी प्रेमिका के प्रेम में.........आप कसौटी पर हर बात को परख सकते हैं पर प्रेम को बस भावनाओं से परखा जाता है..........आज भी प्रेम में सच्ची भावना निहित है.........मै जानती हूँ ,मैंने देखा है......कुछलोग इस तथ्य को नहीं मान रहे, आज भी संसार में कुछ लोग हैं जो प्रेम में स्वार्थ न लेकर समर्पण और त्याग से भरे हैं......... आज काफी हद तक लोगों के दिल में स्वार्थ की भावना आ चुके हैं,पर उससे क्या. सभी के साथ तो ऐसा नहीं ...........और स्वार्थ की भावना तो हर काल में रहा कहीं थोड़ा कही ज्यादा. तो क्या प्रेम का स्वरूप बदल गया,क्या लोगों ने प्रेम करना छोड़ दिया.....आपने किसे देखा है प्रेम की राग आलाप करते हुए वो पूरी ज़िन्दगी बीता दिया..........किसी के खोने के बाद का क्या आजीवन आप अपने आपको ये सोंच कर गम में कैद कर लेते हैं मैंने अमुक चीज़ को,अमुक व्यक्ति को खो दिया.....आपके जीवन में क्या फिर खुशियाँ आती ही नहीं आप उसे अपनाते ही नहीं हो.............???
नहीं कुछ दिनों के बाद ये खालीपन एक भराव में बदल जाता है.........आपको एहसास होकर भी एहसास नहीं होता..........क्योंकि आप उस अँधेरे से निकलना ही नहीं चाहते...और जो ज्योति आपके रहो को रोशन करने को तत्पर है उसे चोट पंहुचा रहे होते हो...........मेरी बातों को बखूभी आप समझ जायेंगे ........ अगर हर बातों को सोंचा जाये..
हाँ एक बात मुहब्बत में तय है आप जिसे सच्ची भावना से चाहते हैं तो उस पर अपना सर्वस्व न्योव्छावर की भावना रखते हैं
तो सर्वस्व में आपका तन,मन धन हर खुशियाँ आ जाती हैं .........प्रेम भावना,का त्याग का,सम्मोहन का,आकर्षण का मिश्रण है इस प्रेम से ही दुनिया रंगीन है ...........